अ+ अ-
|
उल्टी दुनिया देखकर सारी पल्टा खा गए मानव।
मानव की मानवता बिक गई आगे बढ़ गए दानव।।
शूद्रों के घर घेरे रहते हैं आज के बड़का पंडित।
वेद-शास्त्र की बात सुनाते पर मर्यादा करते खंडित।।
अपने पथ से नीचे गिर गए ऊँची पदवी लेकर।
माया के पीछे दौड़ रहे हैं मान-मर्यादा दे कर।।
पैसे को गँठियाते रहते सस्ता ज्ञान जता कर।
बगुला-सी पोशाक पहनते इज्जत पानी लुटवाकर।।
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पावें यह कलयुग के मेहमान
गुरु कहना है बेकार इन्हें अब गोरू ही तू जान
|
|